दिल ढूँढ़ता है

‘दिल ढूँढ़ता है…!’ - हर दिल का प्रतिक है यह उपन्यास, सदा जीवन में कुछ तलाशता इंसान का मन इधर से उधर डोलता रहता है। कभी यह अच्छा, तो कभी वो अच्छा, इस पाने-चाहने की राह पर चलते-चलते कौन कहाँ निकल जाता है उसे पता ही नहीं चलता। प्यार की तलाश एक ऐसी तलाश है जिसे कोई ठीक से समझ नहीं पाता। क्या प्यार बहारी तलाश है या फिर इंसान के अपने भीतर की ही तलाश है?


कहानीयों, कविताओं और किताबों में सदा ही पाठक अपने ही अनुभवों को तलाशता है या फिर दूसरे अनुभवों में अपना प्रतिबिम्ब ढूँढ़ता है। इस राह को वह आसानी से समझना चाहता है और इसके लिये भाषा की सरलता भी ज़्यादातर पाठकों की मुख्य खोआईश होती है। कभी लेखक गम्भीर हो जाता है, तो कभी अपने की ख्यालों में खोकर नये और अनोखें सपनों में बह जाता है, कभी इस पार तो कभी उस पार तैरता यह मन, पढ़ने वाले को अपने संग लेकर चलना चाहता है। यह साथ कभी-कभी छूट भी जाता है फिर साथ निभाने वाले अपना साथ बनाये रखने की कोशिश करते रहते हैं तो यह कभी छुट भी जाता है, कभी रूठ भी जाता है, कभी गुस्से में भी भर जाता है, कभी झूँझलाहट पैदा करता है, फिर कभी-कभार पाठक का लेखक से साथ छुट भी जाता है। मगर उपन्यास ‘दिल ढूँढ़ता है…!’ में लेखक की जाने-अनजाने में की हुई यह कोशिश साफ़ झलकती हैं और वह अवश्य चाहता होगा कि इसे पढ़ने वाले पाठक, इससे इसके आख़िर पन्ने तक जुड़े रहें और लेखक की यह कोशिश काफ़ी हद तक कामयाब भी हुई है।


सच पूछो तो हर इंसान एक लेखक है, जो विचारों के संग रिश्तों में जीता है, वह चाहे तो अपने अनुभवों को काग़ज के पन्नों पर लिख सकता है और फिर धीरे-धीरे यही प्रक्रिया उसके लिये एक पुस्तक का रूप ले सकती है। मगर यह तभी मुमकिन हो सकता है जब आप इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लें, जैसे नाहना-धोना, खाना-पीना, सोना-जागना, कमाना-खर्चना आदि। ठीक उसी तरह विचारों की अभिव्यक्ति को भी आप अपने जीवन का हिस्सा बना उसे रोज़-मर्रा के कार्य के साथ करते रहा सकते हैं। रोज़ लिखते रहना, महज कुछ पा लेने के लिये ही नहीं होगा बल्कि आपकी यह आदत आपको जीवन के सही अर्थ समझने के लिये बेहतर साबित हो सकती है। जीवन भी अनगिनित भावनाओं, संवेदानओं का ही स्वरूप है, जिसे समझने और जानने के लिये पूरा जीवन अधूरा रह जाता है। शायद इसीलिये इंसान कई जन्मों से होकर गुज़रता है और इन्हीं जन्मों के अनुभवों को कभी अपने साथ लेकर चलता है, तो कभी पीछे ही छोड़ आता है। इसका सत्य जानने के लिये यह ज़रूरी है कि लिखने और पढ़ने को बिना ज्यादा वक़्त बर्बाद किये अपनी आदत में शामिल कर लेना चाहिए। इस प्रक्रिया में आप अपने भीतर के असंख्य जन्मों के अनुभवों के रहस्य को अवश्य जान पायेंगे।



ढूँढ़ेे है जिसे हर पल, हर घड़ी,

छिपा है भीतर ही तेरे सब सदा,

विचित्र है इस जीवन का रहस्य, 

फिर क्यूँ विचिलित है मन तेरा।।


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