पता ना चला

जब नज़र मिल रही थी पता ना चला
ईश्क़ कब हो गया कुछ पता ना चला

बाते दिलकी मेरी वो समझने लगा
दिलने अपना कहा कब पता ना चला

चाहते धीरे धीरे भी बढ़ने लगी
मुंतज़िर दिल रहा कब पता ना चला

भीड़ दुनिया से दिल दुर होने लगा
दिल कसम दे दिया कब पता ना चला

दिलमे हसरत तेरी कैसे बढ़ने लगी
ज़िंदगी कह दिया कब पता ना चला

नींद मे बड़बडाने की आदत ना थी
ख्वाब तु बन गया कब पता ना चला

ऐसे मंज़र दिवाना तेरा बन गया
आह भरने लगा कब पता ना चला

हबीब मंज़र

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