वादे को याद आया की चलो एक वादा करें...

Sudhir Kumar Pal

Sudhir Kumar Pal

24 June 2018 · 1 min read

वादे को याद आया की चलो एक वादा करें,
तुझे भूल जाने का खुद से चलो एक वादा करें...

उड़ती मौत के साये में कब तक दिन गुज़ारें हम,
अब आओ के उसके पंखों से लिपटें और ज़िन्दगी से किनारा करें...

मुस्तैद कब तक रहे सांसें इस दिल के दरवाज़े,
बुझते आँखों के दीयों को अब मुक़म्मल ही सितारा करें...

फबेगी कब तक आखिर इन लबों पर हंसी की लहरें,
आओ के अब इन्हे भी माशूक़-ए-मोहोब्बत से रवादा करें...

मरमरी ही सही बदन तेरा है मिट्टी कमाल,
मिट्टी में मिला के मिट्टी कमाल होने का इरादा करें...

लानत-ओ-अहमक़ उठाये खूब इश्क़ में भटकते दर-बदर,
अब होके गुलज़ार इन हिमाक़तों से चलो आओ गवारा करें...

बिखरी ज़ुल्फ़ों सी तेरी मेरी यूँ अब ज़िंदगानी हो गयी,
बनाये कफ़न इन्हें ही अब तो क़ब्र में चलो गुज़ारा करें...

'हम्द' ना था कभी तेरे रूप का दीवाना 'नाज़',
थी आलम-ए-आवारागी-ए-रूह-बा-मस्ती चलो अब और ज़्यादा करें....

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