खेल हाथो का, या माया मन की
शब्द तो बहेंगे ही, दिल बोल दो या साया तन का
हर शोर या भावो का आवेग जो मन में उठे
कही दूर किसी जमीन से बहती हवा की खुशबु लगती है
निकलती जो तानो की रौशनी,किसी हाथ से जाती बिखर
वो न कला न कलाकार, वरन है किसी सादे मन का उपहार
हो सके तो समझ उस मन को, जिसमे उदित वो भावना
कैसे चौका जाती है, भ्रमर जैसे फूल को जाता है चुपके से छू
तेरे शब्द है संचार उसी दुनिये के व्यवहार का
जहां न सोच, न समझ और न ही कोई आडमबर भरा आदेश
बस लिखे हुए जस्बात, बहते हुए अलफ़ाज़, जो तृप्त भावना को करते व्यक्त
हाँ तू एक कवी की कल्पना है, है प्रभु का आदेश, लिख बस लिख