चिड़ियों को आसरे की आस

चिड़ियों को आसरे की आस||मैं पिछले दो सालों से अपनी खिड़की पर चावल के दाने और पानी का पात्र रख देती हूँ और गौरैया की बाट जोती हूँ|जब कभी बारिश होती है,तब मेरी खिड़की का पल्ला उनका विश्राम स्थल बनता है|

सुबह के वक़्त मैं जब सोई रहती हूँ,तो उनकी चहचाहट से मेरी नींद खुल जाती है|जैसे वो मेरा अलार्म हों|उनकी एक आदत मुझे बहुत प्रिय है|वे दाना देखकर तुरंत उसे खाने नहीं आते|पहले शोर मचाकर अपने मित्र मंडली को बुला लेते हैं फिर चह्चहाते हुए मौज उठाते हैं|जैसे वे अपनी ख़ुशी बाँट रहे हो|इनसे यह बात सीखी जा सकती है,कि कैसे मिल-जुल कर खुशियाँ बांटी जाती हैं|

शाम के वक़्त गौरैया के दो जोड़े हमेशा आते हैं|ये मेरे रोज के दोस्त हैं|कभी खिड़की पर कूदते है,तो कभी  दिवाल पर|इनका विश्वास जीतने में मुझे काफी वक़्त लगा|पहले मुझे देखते हीं फुर्र से उड़ जाते थे|पर अब मेरे रहने पर भी नहीं उड़ते|जब इनका खाना खत्म हो जाता है,तो चीं-चीं कर के अपनी बात कह देते हैं|अपनी चहचाहट से अपनी ख़ुशी का इजहार करते हैं और कल आने के वादे के साथ उड़कर चले जातें हैं|

मैं सबसे यही अपील करुँगी की आप भी चिड़ियों के लिए आसरा सजाईए|वे आएंगे और आपके अंदर एक सकारात्मक परिवर्तन होगा जब आप उनका इंतज़ार करेंगे|

फिर आना गौरेया,अपनी राग सुनाने|  मन को हर्ष पहुँचाने|

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