बईमानी की दौड़

                                                                                                     

                         बईमानी करने में हम अव्वल रहे हैं। अव्वल दर्जा क़ायम रहे इस लिए नई बईमानी कर डाली गई बच्ची के साथ। देश के हुक्मरानों ने पता नहीं ईमानदारी से कहा या बईमानी से कि बच्ची के साथ इंसाफ होगा। कहने और सुनने से देश की प्रजा को तसल्ली मिलती है। चलो अब इंसाफ होगा। भले ही न हो । फिर भी सोचने से हो जाता है इंसाफ। जनता इसी भाव भावना से खुश रहती है। अपन भी बईमानी के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहता। इस लिए कि जब इंसाफ ज़ुबान से हो जाता हो। मेहनत न करनी पड़ती हो। तो बईमानी को बुरा भला क्यों कहा जाए। ईमानदारी से तो बईमानी अच्छी है। जो पल भर में सम्बोधित करके ही इंसाफ दिला देती है। और ईमानदारी बरसों - बरस इंसाफ की गुहार लगाते लगाते अपनी चप्पलें घिसती फिरती है। बईमानी से इंसाफ की कुशलता के सिर्फ़ कागज़ी स्टेटस बनते हैं।बईमानी अपनी चाल को ईमानदारी की दौड़ से आगे रखती है। ताकि इस मैराथन में उसकी अपनी जीत बनी रहे।


                     इधर बईमानी को मानसिक रूप से पारंगत होने के लिए किसी डिप्लोमा की कभी ज़रूरत  नहीं पड़ी। बल्कि बईमानी का बीज स्वतः अंदर ही हमेशा अंकुरित होता रहा । जब भी दिल किया उसने अपना ज़मीर मारकर बईमानी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर डाले। सामने वाले ने ज़्यादा से ज़्यादा हाय तौबा ही मचाया। और कोर्ट कचहरी ने बेइमानी का मुस्कुराकर स्वागत किया। बईमानी को उपदेश न दो भाई। न ही बईमानी से ईर्ष्या करो। इससे बईमानी के बनाए हुए खुद के स्तर को दुखन होती है। इसकी सैद्धांतिक सफलताओं की मजबूत बुनियाद का अपमान होता है।  


                     कहने वाले जितना चाहे कह लें कि यह राह गलत है। पर बेईमानी के पास टाइम नहीं है सोचने का। बईमानी ईमानदारी को बईमानी के गुण सिखाने में व्यस्त है। अब पाकिस्तान को क्या पड़ी जो आज़ादी से अब तक बईमानी से पेश आ रहा है। ईमानदारी से कभी उसकी पटी ही नही। उसको कुछ तो बेनिफिट होता होगा। तभी वो बईमानी के पौधे को सींच कर बड़ा कर रहा है। उसको अच्छी तरह पता है कि हमने अगर बईमानी को फैशन की तरह नही अपनाया तो बड़ी बड़ी शक्तियाँ उसको कहीं का नहीं छोड़ेंगी । 


   आसिम अनमोल

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