कॉलेज की याद ....
कैंटीन की चाय और तेरा साथ ...
वो नाक पर टिकी ऐनक से झांकती...
खामोश लेकिन शरारती आंखे ....
धुयें के छल्ले में हर फिक्र को उड़ाने की आदत..
दुनिया को मुट्टठी में करने की चाहत ...
फिर अचानक एक दिन
यूँ ही चले जाना तेरा ....
याद तो है ....
पुरानी ऐनक पर जमी धूल जमी हो जैसे ...
तेरी यादें भी वैसी ही हो गयी हैं अब ....
धुंधला धुंधला सी ....कुछ भूली भूली सी ...