सावन की मेंहदी

हर महिला को सावन के महीने से एक अलग ही लगाव होता है|कुछ न कुछ यादें जरुर जुड़ी होती हैं|

सावन का महीना शुरू होते ही; प्रकृति की हरियाली, मिट्टी की सौंधी खुशबु के साथ मेंहदी की खुशबु भी आनी शुरू हो जाती है|इसी खुशबु के साथ याद आ जाता है, जब हम गीली मिट्टी पर अपने पैरों के निशान बनाया करते थे,शांत पड़े पानी में झप से कूद जाना और वह खुबसूरत लम्हा जब मैं और मेरी सहेलियां सावन के आते हीं, मेंहदी के नए-नए डिजाईन अपनी कॉपियों के पिछले पन्ने पर बनाया करते थे|कभी-कभी तो पेन से हीं हाथों पर मेंहदी सज जाती थी|चिढ़ने-चिढ़ाने,हंसी-ठिठोली का वह दौर|बार-बार अपने हाथों को हिलाना और बालों तक ले जाना|मेंहदी के लाली पर एक-दूसरे को छेड़ना|राखी के वक़्त खासतौर पर हाथों में मेंहदी सजी होती थी|

शायद,उस वक़्त सावन महीना नहीं,रुत होता था|उसकी हवाओं में हीं वह मादकता होती थी|आज जब भी लम्हा याद आता है,तो मन में एक अलग हीं अनुभूति होती है|पर आज वह पहले वाली बात कहां, अब तो मेंहदी के नाम पर सिर्फ बिद पूरी होती है|हथेली पर मेंहदी की बिंदी सजा के|

क्या आपने भी कभी अपनी सहेलियों के साथ यह लम्हा जिया है...

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