छन्द शास्त्र : तीसरा अध्याय : छन्द के घटक :मात्रा

छन्द शास्त्र : तीसरा अध्याय : छन्द के घटक :मात्रा


नमस्कार दोस्तों !

छन्द शास्त्र के तीसरे अध्याय मे आपका स्वागत है!

दूसरे अध्याय मे हमने छन्द के एक घटक अनुप्रास तथा यमक के बारे मे विस्तार से जाना।

इस तीसरे अध्याय मे हम छन्द के एक घटक 'मात्रा' के बारे मे जानेंगे। शायद ये छन्द का सब से महत्वपूर्ण घटक है। इसके बिना छंद की कल्पना असंभव है क्यों कि ये छन्द उत्पत्ति का मूलाधार है। किसी भी छन्द के बनने मे मात्रा गणना निहित है । 

चलिए पहले जानते हैं कि 'मात्रा' क्या होती है।

मात्रा को अगर बहुत सरलता से परिभाषित करना हो तो कह सकते हैं कि 'किसी भी वर्ण या अक्षर के उच्चारण में जो समय लगता है वह उसकी मात्रा है'। यहा पर ये अनिवार्य है कि हम व्याकरण के उन पहलुओं पर चर्चा करे जो मात्रा भार और मात्रा गणना से निगड़ित है । इन पहलुओं पर हम अपने दूसरे अध्याय मे भी, किसी और संदर्भ मे, बात कर चुके है। परंतु यहा पर उनको दुहराना आवश्यक है।

हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है और देवनागरी लिपि मे कुल मिलाकर बावन वर्ण है जिनमे ग्यारह स्वर (अ, आ, इ, ई, उ आदि)  तैंतिस  व्यंजन (क, ख, ग, घ, त, थ, द, ध, न आदि) एक अनुस्वार (अं) और एक विसर्ग (अ:) शामिल है।  व्यंजनों को वर्गों मे बांटा गया है। जैसे त,थ,द,ध,न का एक वर्ग है, प,फ,ब,भ,म का एक वर्ग है, य,र,ल,व,श का एक वर्ग है... आदि।

भाषा की सबसे छोटी इकाई या अंश होते है व्यंजन, स्वर, अनुस्वार और विसर्ग। जब किसी व्यंजन के साथ कोई स्वर, जुड जाता है तो बनता है 'वर्ण' या अक्षर। उदाहरणस्वरूप शब्द कमल मे हर एक व्यंजन के साथ 'अ' का स्वर जुडा है। "क+अ = क", "म+अ=म" और "ल+अ=ल"।  इसी तरह शब्द 'दाता' का विश्लेषण किया जाए तो वह होगा "(द+अ+अ=दा)+ (त+अ+अ=ता) = दाता"।

व्यंजनों और स्वरों के मेल से अक्षर बनते है। अक्षरों को सही क्रम मे रखने से जब कोई अर्थ  निष्पादित होता है तो उसे शब्द कहते है। शब्द के बनने के लिए अक्षरों का सही क्रम मे होना आवश्यक होता है। केवल अक्षरों के जमघट से शब्द नहीं बनते।  उदाहरणस्वरूप क, म और ल ये तीन अक्षर जब सही क्रम मे रखे जाते है तो शब्द बनता है 'कमल' परंतु क्रम बिगाड़ दिया जाए तो 'लकम' या 'मलक' शब्द बनते हैं जिनसे कोई  अर्थ निष्पादित नहीं होता। इसी तरह शब्दों को सही क्रम मे रखने से वाक्य बनते हैं। 

चलिए अब स्वरों को और करीब से जानें। 

स्वरों को आप दो भागों मे विभाजित कर सकते हैं। -हस्व यानि लघु और दीर्घ यानि गुरू। वह स्वर जिनके उच्चारण में अधिक समय नहीं लगता उन्हे लघु स्वर कहते हैं। अ, इ, उ यह -हस्व स्वर है। आ, ओ, ई, ऊ, ए, ऐ यह दीर्घ स्वर है क्यों कि इनके उच्चारण मे अधिक समय लगता है। जब किसी लघु स्वर का किसी व्यंजन से मेल होता है तो बनने वाला अक्षर भी लघु होता है और जब किसी दीर्घ स्वर के साथ किसी व्यंजन का मेल होता है तो निष्पादित अक्षर दीर्घ बन जाता है। उदाहरणस्वरूप, जब व्यंजन 'क' के साथ स्वर 'अ' मिलता है, जो कि लघु स्वर है, तब बनने वाला अक्षर 'क' भी लघु होता है। किंतु जब वर्ण 'क' के साथ स्वर 'आ' का मेल होता है, जो कि एक दीर्घ स्वर है, तो बनने वाला अक्षर 'का' भी दीर्घ होता है।

अब वापिस लौट आते है अपनी 'मात्रा' की परिभाषा की तरफ। 'किसी भी वर्ण या अक्षर के उच्चारण मे जो समय लगता है वह उसकी मात्रा है'।

उपर दिए हुए उदाहरणों से ये सिद्ध हुआ कि 'क' की मात्रा लघु है और 'का' की मात्रा दीर्घ है।

अब आते है 'मात्रा भार' की संकल्पना की तरफ। 

छन्द मे हर वर्ण का अपना  मात्रा भार या वज़न होता है। लघु वर्णों का मात्रा भार 1 (एक) होता है और दीर्घ वर्णों का मात्रा भार 2 (दो) होता है।

इन्हे प्रतिकात्मक रूप मे 1= । और 2= S ऐसे भी चित्रित किया जाता है। 

तो शब्द 'कमल' का मात्रा भार हुआ 111, और शब्द 'कमला' का मात्रा भार  112  हुआ ।

देखा दोस्तों? जिस विषय को हम क्लिष्ट समझ रहे थे उसमे हमने कितने कम समय  कितनी प्रगती कर ली। ना ही हमने "मात्रा गणना" शुरू कर दी, हमने इसका प्रथम या सबसे मौलिक नियम भी आत्मसात कर लिया। "हर लघु वर्ण या अक्षर का मात्रा भार या वज़न 1 होता है और हर दीर्घ वर्ण या अक्षर का मात्रा भार 2 होता है।"


मात्रा गणना

तो चलिए अब मात्रा गणना को परिभाषित करें।

"वर्णों या अक्षरों की मात्राओं की गिनती करने की प्रक्रिया को मात्रा गणना कहते हैं।" मात्रा गणना का दूसरा नाम 'कलन' भी है।

इस प्रक्रिया का सबसे मौलिक नियम तो हमने सिख लिया है, आइए अब इस प्रक्रिया के नियमों को विस्तार मे जाने।


मात्रा गणना के नियम

1) सारे लघु वर्णों या अक्षरों का मात्रा भार 1 होता है। इसका उदाहरण सहित स्पष्टीकरण उपर दिया जा चुका है।

2) सारे दीर्घ वर्णों या अक्षरों का मात्रा भार 2 होता है। इसका भी उदाहरण सहित स्पष्टीकरण उपर दिया जा चुका है।

3) जोडाक्षरों का का मात्राभार : 

कुछ जोडाक्षर देवनागरी वर्ण माला मे व्यंजनों का स्थान रखते है। क्ष (क+श),  त्र (त+र,) ज्ञ (द+न+य), श्र(श+र) ये वो जोडाक्षर है और कुछ जोडाक्षर दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं जैसे द्व, क्री, न्य ...आदि। 

जोडाक्षर अगर शब्द का प्रथम अक्षर हो तो उसकी मात्रा 1 गिनी जाती है। जैसे त्रिशूल, द्विगू, क्षमा... आदि। परंतु अगर जोडाक्षर के साथ किसी दीर्घ स्वर का मेल हो तो उसके शब्द के शुरूआत मे होने पर भी उसकी मात्रा दीर्घ गिनी जाती है। जैसे "क्षेमकुशल"। इसमे 'क्ष' के साथ दीर्घ स्वर 'ऐ' जुड गया है सो इसकी मात्रा दीर्घ यानि 2 हो जाती है। क्ष =1, क्षे =2 

जोडाक्षरों के संबंध मे दूसरा नियम ये है कि अगर ये शब्द के मध्य या अंत्य मे आते हैं तो जोडाक्षर का अर्ध अक्षर अपने पिछले अक्षर से जुड जाता है । इस कारणवश, जोडाक्षर के पीछे वाला अक्षर दीर्घ होकर उस अक्षर को लघु कर देता है जिसके साथ अर्ध अक्षर पहले जुडा हुआ था। एक उदाहरण के साथ इसे समझना आसान होगा।

 "जन्म"। इस शब्द मे 'म' के साथ 'न्' का अर्ध अक्षर जुडा है। मात्रा गणना करते समय 'न्' 'म' को छोड 'ज' से जुड जाएगा। इससे 'ज' का मात्रा भार 2 हो जाएगा और 'म' का मात्रा भार 1 हो जाएगा। तो 'जन्म' का मात्रा भार हुआ 'जन्म = 2 1'। यहा पर एक बात का ध्यान रखना है कि शब्दों को लिखना उनके मूल रूप मे ही है। केवल उनकी मात्रा गणना इन नियमों के अनुसार करनी है। तात्पर्य, भले ही उपर दिये उदाहरण मे  नियमानुसार मात्रा गणना करते समय 'न्' 'म' को छोड कर 'ज' से जुड जाता है परंतु लिखते समय शब्द को "जन्म" ही लिखना है, "ज्नम" नहीं।

जोडाक्षर के संबंध मे तीसरा नियम ये है कि अगर जोडाक्षर के पहले वाला अक्षर दीर्घ है तो जोडाक्षर के अर्ध अक्षर से मिलने पर भी उसकी मात्रा दीर्घ ही रहेगी और जिस अक्षर के साथ वह पहले जुडा था उसकी मात्रा लघु हो जाएगी। उदाहरणस्वरूप, "धार्मिक"। इसकी गणना ऐसे होगी: धा+र्+म+इ+क+अ =धार्मिक। इसमे 'र् जो अर्ध अक्षर है वह मात्रा गणना करते समय 'धा' के साथ जुड गया। परंतु 'धा' की मात्रा पहले ही दीर्घ है सो वह 2 ही रहेगी। 'र्' अर्ध अक्षर अपना अस्तित्व खोकर 'मि' को लघु  बना देगा। 'क' की मात्रा 1 ही रहेगी। तो धार्मिक शब्द का मात्रा भार हुआ धार्+मि+क = 2 1 1

जोडाक्षर के संबंध मे चौथा नियम ये है कि अगर अर्ध अक्षर किसी दीर्घ अक्षर से जुडा है तो उस दीर्घ अक्षर की मात्रा उस अर्ध अक्षर से विलग होने पर भी दीर्घ ही रहेगी। उदाहरणस्वरूप 'कर्ता'। इस शब्द का विश्लेषण होता है "क+अ+र्+त+आ"। मात्रा गणना के समय 'र्' अर्ध अक्षर 'ता' को छोड़ कर 'क' अक्षर से जुडेगा। जिससे 'क', जो लघु है, उसकी मात्रा गुरू हो जाएगी। परंतु 'ता' की मात्रा पहले ही गुरू है। इसलिए 'र्' अर्ध अक्षर से विलग होने के पश्चात भी 'ता' की मात्रा गुरू ही रहेगी। तो 'कर्ता' शब्द की मात्रा गणना हुई "कर् + ता - कर्ता = 22

उपरोक्त धारा 3) मे जोडाक्षरों के मात्रा गणना के जो नियम दिये गए हैं इसके कुछ अपवाद भी हैं। जैसे : तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122 ये अपवाद इन शब्दों के उच्चारण पर आधारित हैं।

इस अपवाद के भी कुछ अपवाद हैं जैसे : नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।

4) अनुस्वार युक्त अक्षर का मात्रा भार :

जब किसी अक्षर पर अनुस्वार (बिंदी) होता है तो उसकी मात्रा दीर्घ हो जाती है। उदाहरण स्वरूप 'अंतहीन'। इस मे 'अ' की मात्रा लघु है परंतु उस पर अनुस्वार होने के कारण उसका मात्रा भार 2 हो जाता है।   फलस्वरूप 'अंतहीन' = 2 1 2 1

यहाँ पर ये जानना ठीक रहेगा कि 'अनुस्वार' क्या है। 

उपर कहीं हमने वर्णों के वर्गीकरण के बारे में सिखा कि किस तरह सारे व्यंजनों को वर्गों मे बांटा गया है जैसे 'त' वर्ग मे त,थ,द,ध,न व्यंजन आते हैं, 'य' वर्ग मे य,र,ल,व,श व्यंजन आते हैं..... आदि। जब एक ही वर्ग के दो व्यंजनों को जोड़ कर एक अक्षर बनता है तब उस जोडाक्षर का जो अर्ध व्यंजन होता है वह अपना अस्तित्व खो देता है और उस जोडाक्षर के पहले वाले व्यंजन पर एक बिंदी लग जाती है जिसे अनुस्वार कहते हैं। उदाहरणस्वरूप 'कंपन' शब्द लीजिए। इसमे 'म्' और 'प' की युती निहित है इस कारण इस शब्द को 'कम्पन' लिखना चाहीए। परंतु 'म' और 'प' एक ही वर्ग के शब्द हैं ('प' वर्ग - प,फ,ब,भ,म) और इस कारणवश म् ,जो कि अर्ध अक्षर है,   अपना अस्तित्व खो देता है और उसके पहले जो 'क' अक्षर  है उसपर बिंदी यानी अनुस्वार लग जाता है।

अब देखते है शब्द 'अन्याय'। इसमे 'न्' अर्ध अक्षर है और उसकी 'य' के साथ युती होती है। परंतु 'न' और 'य' दोनों अलग वर्गों के व्यंजन हैं ('त' वर्ग और 'य' वर्ग) इसलिए 'अ' के उपर अनुस्वार नहीं लगता और जोडाक्षर को उसके मूल रूप मे ही लिखा जाता है। यानि कि 'अंयाय' न लिख कर 'अन्याय' ही  लिखा जाता है।

5) अनुनासिक स्वर युक्त अक्षर का मात्रा भार:

बहुत से शब्द ऐसे होते है जिनमे किसी अक्षर का उच्चारण आंशिक रूप से नाक से यानि कि अनुनासिक होता है। उदाहरण स्वरूप यहाँ, वहाँ, कहाँ, हँसी.... आदि। ऐसे वर्णों पर चंद्रबिंदी लगी होती है जो  द्योतक है कि इस वर्ण का उच्चारण अनुनासिक होना है।

अगर अनुनासिक वर्ण लघु है तो वह चंद्रबिंदी लगने के पश्चात भी लघु ही रहता है और दीर्घ हो तो दीर्घ ही रहता है। चंद्रबिंदी से अक्षरों की मात्रा नहीं बदलती।

6) अब यहा पर ये बताना उचित रहेगा कि आप दो लघु अक्षरों का मात्रा भार जोड़ कर गुरू नहीं कर सकते। उदाहरणस्वरूप शब्द 'कमल' का मात्रा भार 1 1 1 है। इसे आप 2 1 या 1 2 नहीं लिख सकते। इस तरह का जोड़ 'वाचिक' मात्रा गणना में होता है परंतु इसका उपयोग कहाँ और कैसे करना है इसके कुछ नियम हैं जिन्हे हम अपने अगले अध्याय मे जानेंगे। 

दोस्तों, हमारा यह अध्याय मैं यहीं समाप्त करता हूँ। जल्द ही मिलेंगे चौथे अध्याय में। हमारे चौथे अध्याय में हम कुछ काव्य पंक्तियों की मात्रा गणना करेंगे। इससे हम मात्रा गणना का प्रायोगिक या व्यावहारिक वातावरण में आकलन कर पाएंगे। उसी समय हम मात्रा गणना मे मात्रा गिराने की जो एक छूट है उस पर भी चर्चा करेंगे और 'वाचिक मात्रा गणना' के बारे मे जानेंगे।

शुभं भवतु! 


                🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  Never miss a story from us, get weekly updates in your inbox.