छींक
छींक तीन प्रकार की होती हैं.
पहली. बेमानी छींक. यानी की छींक के नाम पर कलंक. दो तीन छींकों तक, एक भी छीटा बहार नहीं आता. होठों के ऊपर चाट कर देख सकते हो. खुद भी या चाहे कोई और. कोई सबूत नहीं.
दूसरी. छिडकाव वाली छींक. तीन चार पाँच..... भूचाल सा आजाता है. दिमाग और शारीर की सभी नस और नाडिया झंकृत हो उठती हैं. कल्पना कीजिये, रुमाल ना हो और सिर्फ हाथों का सहारा हो तो. सोने पे सुहागा, अगर मोटर साइकिल चला रहे हों, बिना हेलमेट के, तो सहरहागिरों को घर जाके निश्चित ही नहाना पड़ेगा. वह अवश्य ही आपको धन्यवाद् देंगे.
तीसरी. इस प्रकार की छींक की रौद्रता और विभत्सता की व्याख्या न कर के सीधे सीधे इसके बारे में बताते हैं, एक छींक यानी की चाहे एक देशी घी का परांठा बना लो या फिर थिकशेक बना लो या फिर धोती में माढ (क्लफ़) लगा लो. यह देखने का सैभाग्य ना ही प्राप्त हो तो अच्छा है.
अतुल कुमार अग्रवाल, कानपुर