जिन्दगी का स्वरुप

नदी को समुद्र की जरुरत नहीं ,
किस्सा वो सुनाये किसे
मगर लहराती है वो उसे देखकर
ये जिक्र बयां कर जाये किसे !!

कभी गहराई को गले लगाए
कभी परछाई को आगोश में ले जाये
धारा अपने आप को समेटतीं है
किनारो से खुद को जुदा कर लेती है !!

खफा है वो समुद्र से
डरती है अब वो उन उफानो से
सोचती है कही खुद को न   खो जाऊ
प्यार को सम्हालते सम्हालते कही
हालात ना सम्हालने लग जाऊ !!

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