अंतिम इक्छा ..

अंतिम -इक्छा
रमिया झोपडी के कोने में लेटी है तेज ज्वर से बदन तपा जा रहा है ।एक मात्र पुत्र रघु माई की हालत पर रोये या काम पर जाए समझ नहीं पा रहा ।घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है।पानी पी कर रमिया और रघु ने कल का दिन बिताया है ।माई आज भी नहीं जाने देगी तो सेठ किसी दूसरे लड़के को काम पर रख लेगा सोच कर रघु परेशान है ।

रघु मात्र दस साल का है पर शरीर से कमजोर रघु की व्य मात्र सात या आठ साल से ज्यादा नही लगती ।घर की जिम्मेवारी और गरीबी ने रघु को समय से पहले ही बुजुर्ग बना दिया है । कल गया था वैध जी से माई के लिए दवा लेने पर खाली पेट दवा क्या असर करेगी ।माई थोड़ी देर को ही चले जाने दे तो सेठ से पेटदर्द का बहाना बना कर आधे दिन में ही वापस आजायेगा ।पूरे दिन के 2  रुपये मिलते है ।एक रूपए में खाने को वानिया की दुकान से चावल ले आएगा पडोस की काकी से थोड़ी सी दाल मिल जाएगी तो माई को खिचढ़ी बना देगा । वैध जी भले मानुस हैं दवा का पैसा नही लिए पर वानिया तो पैर भी नही रखने देगा दुकान पर ।

रघु यहां आ!  रमिया की कमजोर आवाज से रघु की विचार -तंद्रा टूटती है । रमिया रघु को अपने पास लिटा लेती हैं ।माँ के पाश में सिमट कर रघु दुधमुहे बालक की तरह माँ के वक्ष से लिपट जाता है ।भूख' प्यास सब एक पल में खत्म हो जाती है कुछ रह जाता है तो बस माँ की गोद का अलौकिक सुख । रघु को अपने वक्ष में समेटे रमिया अपने पुराने दिनों की स्मृति में खो जाती है।

पंद्रह वर्ष की अवोध बालिका थी जब व्याह कर रघु के बापू के साथ इस गांव आयी। हरि की वय भी कोई सत्रह वर्ष की रही होगी । घर मे परिवार के नाम पर एक माँ थी जिन्हें कम दिखाई देता था ' हरि के बापू कम उम्र में भगवान को प्यारे हो गए ।आस -पास के गांव में पंडिताई का छोटा- मोटा काम हरि करता था और थोड़ी सी जमीन थी गुजरे के लिए ।एक दिन गांव में बाढ़आयी थी दूसरे गांव से श्राद्ध का निमंत्रण था बहुत मना किया था रमिया ने पता नही क्यों जी कमजोर हो रहा था पर हरि नही माना वापस हरि का पार्थिव शरीर आया ।बाढ़ अपने साथ रमिया की खुशियां ले डूबी थी । रघु तीन माह पेट में था बेचारा अपने पिता का मुख भी नही देख सका ।

हरि के जीते जी उसने कभी घर के बाहर कदम भी नही रखा पर अब दो - दो पेट का सवाल था ।गरीब थी तो क्या थी तो ब्राह्मण की बहू कोई ऐसा - वैसा काम भी नही कर सकती थी । बड़ी हवेली की अम्मा ने उसको सहारा दिया ।घर में पंडित की सहायता के लिए रमिया जाने लगी ।दिन  कट रहे थे तभी हरि की माँ की मृत्यु साँप के काटने से हो गयी ।रमिया का एक मात्र सहारा  भी विधाता  ने छीन लिया । जो थोड़ी सी जमीन बची थी वो हरि और उसकी मां के क्रियाकर्म में लग चुकी थी ।रमिया का अब बड़ी अम्मा के सिबा कोई सहारा न बचा ।

बड़की अम्मा का रुतवा था हवेली में जब तक तक रमिया को कोई परेशानी नही रही । बड़की अम्मा अपनी उतरी सफेद धोती भी रमिया को दे देती थी ।जिसे पहन कर रमिया खुद को बड़की अम्मा के जैसे महसूस कर लेती थी ।फिर बड़की अम्मा ने भी कुछ साल पहले बिस्तर पकड़ लिया और रमिया की पूंछ हवेली में कम होने लगी । दमा की बीमारी के बाद बड़की अम्मा की बहू ने रमिया को हवेली से निकाल दिया ।छूत की बीमारी थी खाने - पीने से फैलती है फिर वो वहाँ काम भी कैसे कर सकती थी ।तब से वो केवल कभी ' कभी बड़की अम्मा के हाल पूछने ही हवेली  जाती है ।बड़ी साध इक्छा है मन मे की बड़की अम्मा की उतरी सफेद धोती मिल जाये पर बहु से कहने की  हिम्मत नही होती ।।

रघु ' रमिया वर्तमान में लौट आती है ।बेटा हमरी एक साध हैं मन में जब हम सरग जाए तो सफेद धोती में जाए।ई हमरी अंतिम  इक्छा है। । रघु माँ की बात सुनकर नींद से जगता है ।माई ' अंतिम इक्छा का होती है।
अंतिम इक्छा का मतलब जो मरने वाला हो उसकी आख़िरी इक्छा  ।रघु जब से पैदा हुआ था तब से इक्छा का मतलब भी नही पता था तो अंतिम इक्छा से वो कैसे परिचित होता पर माँ कह रही है तो होता  होगा कुछ। अभी तो बस कुछ खाने को मिल जाए यही उसकी इक्छा  है । बेचैनी से करवट लेता है ।आधा दिन हो गया अब तो सेठ भी काम नही देगा ।।

रघु ! ओ रघु कहाँ हो ? हवेली से बामनो को बुलावा आया है जल्दी करो ग्यारह ब्राह्मण चाहिए ।बड़की अम्मा का श्राद्ध है जल्दी करो कोई और मिल गया तो समझो कुछ नही मिलेगा । रघु जल्दी से अपने दोस्त  छेनू के साथ हवेली चल देता है । अब  माई के लिये भी खाना मिल जाएगा । हवन-  पूजन के बाद ब्राह्मण भोज होता है साथ में सबको दान - दक्षिना भी मिलेगा सोच कर ही रघु खुश है । भोज के बाद  की दक्षिणा सामने रखी है ।सफेद धोती भी है शायद रघु साफ देख नही पा रहा । भोज समाप्त हो चुका है रघु खुश  है जमीन पर पैर नही पड़ रहे ।दो दिन बैठ कर खाएं इतना मिला है ।।माई की धोती भी है

रमिया रघु की रास्ता देखते - देखते इहलोक से परलोक को प्राप्त हो चुकी है ।रघु माई की मृत देह से लिपट कर विलाप कर रहा है ।दक्षिणा में जो भी मिला था उससे देह संस्कार करने के लायक पैसा नही है ।बहुत दया करने पर एक पंडित मिला है जो कम में काम कर देगा पर कुछ तो देना ही होगा। रघु का बहुत मन है माई को सफेद धोती पहना कर विदा करने का पर  पण्डित जी को क्या देगा फिर ?

रमिया का अंतिम संस्कार हो चुका है और ब्राह्मण देवता सफेद धोती की दक्षिणा पा कर भी   अतृप्त रघु की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं!! सुप्रिया सिंह!

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