"शरीर में तैंतीस देबताहैं।"


शरीर मन्दिर में मुख्य देबता आत्माराम है।
स्तूल पंच भूत_ अग्नि, वायु जल, आकाश पृथ्वी यह स्थूल पंच भूत में शरीर गढा है। सूक्ष्म पंच महा भूत मुलाधार-पृथ्वी तत्व स्वाधिष्ठान जल तत्व , मणिपुर- अग्नि तत्व, अनाहत_ वायु तत्व , विशुद्ध - आकाश तत्व- ये दस देबताऍ है।
शरीर में दस वायु है। _
मुख्य वायु पांच _ प्राण , अपना, ब्यान, उदान, समान
गौण वायु - नाग, कुम॔ , देबदत्त, धनंजय, कृकल
ये बीस होगए।
दस इन्द्रियाँ है। -
मुख्य दो आँख, दो कान , जीभ और त्वचा। नाक ज्ञानेन्द्रिय यह पांच है।
कम॔न्द्रीय- पांच - दो हाथ में इन्द्र दोनों पाँव में- बिष्णु,मल द्वार, उपस्त बाक् शक्ति हो गये 30।
31_ मन_ राम,
32- बुद्धि _ सरस्वती,
33- अहंकार _ शिव
आत्मा राम इस सभीको सजाके अन्दर में बैठी है
इसलिए शरीर को देवालय बोला जाता है।
शरीर में दस वायु है।हमारा शरीर एक मंदिर है। इस शरीर में 33 गोटिदेबता है। यों सात समुन्दर, सात पर्वत सात ॠषियों सब के सब बैठे हैं।
हमारा ये दोनों कान, दाहिने गौतम और बाएँ भरद्वाज ॠषि बैठे हैं। ये दोनों ऑखे दाहिने बिश्वमित्र बाऍ जमदाग्नी है। ये दोनों नाक के छिद्र दाहिने वशिष्ठ बाऍ कश्यप हुऍ है। जो ब्रह्म को कथा सुनाते हैं और खाते हैं। जिस प्रकार कथा जिह्वा से होती है भोजन भी जिह्वा से होती है और संस्कृत में जो खाता है उसे अत्रि भी कहते हैं। इस प्रकार जो बिश्वासकरता है, वह सब भोजनो का करने का अधिकार हो जाता है। सब भोग उसे मिलते हैं।

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