छन्द शास्त्र - दूसरा अध्याय - छन्द के घटक - अनुप्रास / यमक

नमस्कार दोस्तों!


छन्द शास्त्र के दूसरे अध्याय मे आपका स्वागत है।

हमारे पहले अध्याय मे हमने छन्द की व्युत्पत्ति के बारे में जाना, उसकी परिभाषा की और उसके घटकों को सूचीबद्ध किया। तदुपरांत हमने छंद के एक घटक "पाद या चरण" का भी उदाहरणों सहित विवेचन किया।  

आज हम छन्द शास्त्र के दूसरे घटक "अनुप्रास" और "यमक" के बारे मे विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।

अनुप्रास और यमक दोनो ही काव्य के अलंकारों के रूप मे सर्वविदित है। छन्द के घटक के रूप मे, अधिकतर, 'तुकांत' का ही समावेश होता है। तुकांत जिसे उर्दू काव्य मे क़ाफ़िया के नाम से जाना जाता है और अंग्रेजी काव्य मे rhyme कहते है। यह अनुप्रास अलंकार का ही एक रूप है और इसे  "अंत्यानुप्रास" भी कहते है। परंतु मुझे ये सही लगा कि केवल तुकांत की बात न कर के हम व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए यहाँ संपूर्ण अनुप्रास और यमक अलंकार की ही बात क्यूँ न करें ? अंत मे इन तीनों का कार्य एक ही है 'वर्णों या शब्दों की पुनरावृत्ति कर के अथवा उन्हे दोहरा कर काव्य को लय और सुंदरता प्रदान करना'।

हम इन अलंकारों के बारे मे जाने इससे पहले 'अलंकार' शब्द का विश्लेषण करते हैं।

अलम् का अर्थ है भूषण और कार माने सुसज्जित. पुर्ण अर्थ है 'ऐसा जो भूषणों से सजा हुआ हो'। जब शब्दों का उपयोग काव्य को अलंकृत करने के लिए किया जाता है तो उसे शब्दालंकार कहते हैं। और जब अर्थ का उपयोग काव्य को अलंकृत करने के लिए किया जाए तो उसे अर्थालंकार कहते हैं। अलंकारों के बारे मे हम कभी और विस्तृत चर्चा करेंगे। यहाँ ये जान लेना पर्याप्त होगा कि अनुप्रास और यमक अलंकार 'शब्दालंकार' की श्रेणी मे आते हैं।

चलिए इन अलंकारों की परिभाषा करते हैं और इनके कुछ उदाहरण जांचते हैं जिससे इन का कार्य और स्पष्ट हो।


अनुप्रास अलंकार

'अनुप्रास' शब्द दो शब्दों के संयोग से बनता है। अनु+प्रास। 'अनु' का अर्थ है 'बार-बार' और 'प्रास' का अर्थ है 'वर्ण'। अतः अनुप्रास का अर्थ है किसी वर्ण की पुनरावृत्ति। अनुप्रास अलंकार मे किसी एक वर्ण को दोहरा के काव्य मे लय लाई जाती है। उदाहरण के लिए:

चारू-चंद्र की चंचल किरणें।

खेल रहीं थी जल-थल मे।।

उपरोक्त में, प्रथम पंक्ति में,  'च' वर्ण के दोहराव से एक लय का निर्माण किया गया है। 

अब हम अनुप्रास अलंकार के पांच प्रकारों के बारे मे जानेंगे.


छेकानुप्रास

जब एक से अधिक शब्दों/वर्णों की स्वरूपत: व क्रमश: पुनरावृत्ति हो तो उसे 'छेकानुप्रास अलंकार' कहते हैं।उदाहरण के लिए: 

रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।

साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।

उपरोक्त मे   रीझि, रहसि, हँसि और दई शब्दों को दोहरा कर एक चमत्कृत कर देने वाली लय का निर्माण किया गया है।


वृत्यानुप्रास

जब एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति हो तो उसे वृत्यानुप्रास कहते हैं। उदाहरण के लिए:

काम कहो कलिमल करिगन के 

उपरोक्त मे 'क' वर्ण के दोहराव से एक  लय आई है। 


लाटानुप्रास

जब किसी एक शब्द या वाक्य खंड की पुनरावृत्ति हो तो उसे लाटानुप्रास कहते हैं। उल्लेखनीय है कि यहाँ पर क्रमशः पुनरावृत्ति अपेक्षित नहीं अथवा वह छेकानुप्रास हो जाएगा। उदाहरण के लिए:

तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा।

इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा।।

यहा पर 'इन्सान' शब्द की पुनरावृत्ति से रचना को एक लय भी प्राप्त हुई है और बल भी।


अंत्यानुप्रास

कह सकते है कि यह सबसे प्रिय अनुप्रास है और छन्द के एक अनिवार्य  घटक के रूप मे इसे ध्रुवस्थान प्राप्त है।

जैसा कि मैंने उपर बताया है, इसे 'तुकांत' भी कहते हैं। उर्दू काव्य मे इसे 'क़ाफ़िया' और अंग्रेजी मे 'rhyme'  कहते हैं।

जब दो पादों, चरणों या पंक्तियों के अंत्य के शब्दों मे वर्ण साम्य हो तो उसे अंत्यानुप्रास कहते हैं। उदाहरण के लिए :

प्रभुजी तुम दीपक हम बाती।

जाकी जोति बरे दिन राती ।।

यहा पर 'बाती' और 'राती' शब्दों से  चरणों के अंत्य मे एक ध्वनि गेयता का निर्माण किया गया है। दन दोनो शब्दों के अंत मे 'आती' का उच्चारण है जिससे एक ध्वनी गेयता निर्मित होती है। यह अंत्यानुप्रास है।


श्रुत्यानुप्रास

श्रुत्यानुप्रास को जानने से पहले हिंदी व्याकरण के कुछ तत्थ्यों का संक्षिप्त  पुनरावलोकन आवश्यक है। 

हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है और देवनागरी लिपि मे कुल मिलाकर बावन वर्ण है जिनमे ग्यारह स्वर (अ, आ, इ, ई, उ आदि)  तैंतिस  व्यंजन (क, ख, ग, घ, त, थ, द, ध, न आदि) एक अनुस्वार (अं) और एक विसर्ग (अ:) शामिल है।  इन्हे वर्गों मे बाँटा गया है। जैसे त,थ,द,ध,न का एक वर्ग है, प,फ,ब,भ,म का एक वर्ग है, य,र,ल,व,श का एक वर्ग है... आदि।

श्रुत्यानुप्रास मे 'एक ही वर्ग के वर्णो'  की पुनरावृत्ति होती है। उदाहरण के लिए:

दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

उपरोक्त उदाहरण मे  'त वर्ग' के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की पनरावृत्ति हुई है।


इस अध्याय के अंत मे अब हम 'यमक' अलंकार के बारे मे जानेंगे।

यमक अलंकार

अनुप्रास अलंकार की ही भांति यमक अलंकार मे भी किसी शब्द की पुनरावृत्ति होती है किंतु अंतर ये है कि उस शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। उदाहरण के लिए:

माला फेरत जग गया, फिरा न मन का फेर। 

कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।

ऊपरोक्त पद्य में ‘मनका’ शब्द का चार बार प्रयोग किया गया है और हर बार आशय अलग है। कभी ‘मनका’ का आशय माला के मोती से है और कभी ‘मनका’ का अर्थ 'मन से जुडा हुआ'  है।

दोस्तों, छन्द शास्त्र पर हमारा ये दूसरा अध्याय यहाँ समाप्त होता है। अगले अध्याय मे हम छन्द के तीसरे घटक मात्रा के बारे मे जानेंगे और मात्रा गणना करना सीखेंगे। 


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