छन्द शास्त्र - पहला अध्याय

नमस्कार दोस्तों  !

क्या आपमे कवित्व छुपा है ? क्या आप एक कवि है अथवा कवि बनना चाहते हैं ? या फिर क्या आप एक पाठक के नाते काव्य मे रुचि रखते हैं ? 

अगर इन प्रश्नों का उत्तर हां है तो ये अनिवार्य है कि आप 'छंन्द विधान' या 'छंन्द शास्त्र' के बारे जाने।

छंन्द शास्त्र के बारे मे मुझे जो जानकारी है वह मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ। आशा करता हूँ ये जानकारी आपको भी उतनी ही रोचक लगेगी जितनी मुझे लगती है।

ये संभव है कि ये जानकारी किसी को थोड़ी क्लिष्ट लगे मगर मैं हर संभव प्रयास करूँगा कि ऐसा न हो। हम उदाहरणों के साथ छंद शास्त्र के तथ्यों को जानेंगे जिससे कि वह नीरस न लगे। इस जानकारी को मैं छोटी-छोटी किश्तों मे विभाजित करूँगा जिससे कि आप को इसे समझने और आत्मसात करने का समय मिले।

तो चलिए अपनी इस आनंद यात्रा की शुरुआत करते है।


छन्द शास्त्र  - पहला अध्याय

छन्द - व्युत्पत्ति और परिभाषा

किसी भी विषय के बारे मे जानने से पहले अगर हम उसकी व्याख्या या परिभाषा कर ले तो हर पढने वाले को हम एक ही पन्ने पर ले आते है। तो चलिए छन्द को परिभाषित करने से पहले उसकी व्युत्पत्ति के बारे में जानें।

'छन्द' या 'छंदस्' शब्द की व्युत्पत्ति 'छद्' धातु से हुई  है। इसका अर्थ है "आल्हादित करना" या "आच्छादित करना"। छन्द को 'वृत्त' भी कहते है। वृत्त का अर्थ है 'प्रभावी रचना'।  छन्द शास्त्र पर उपलब्ध सबसे प्राचीन संदर्भ ग्रंथ आचार्य पिंगल का है। इस कारणवश इसे 'पिंगल शास्त्र' भी कहते हैं। छन्द शास्त्र का उद्गम संस्कृत भाषा मे हुआ और ये वैदिक काल से ही काव्य का एक अविभाज्य भाग बन गया।

छन्द को अगर परिभाषित करना हो तो आसान शब्दों मे कह सकते हैं कि 'काव्य मे लय लाने वाले तत्व को छन्द कहते हैं'।

कहा जाता है कि काव्य अगर लय मे नहीं तो फिर वह पद्य नहीं गद्य है। आजकल 'गद्य कविता' का बहुत चलन है परंतु ये तत्थ्य झुठलाया नहीं जा सकता कि काव्य मे अगर लयबद्धता हो तो वह श्रोतृवृंद को अधिक आकर्षित करता है। अगर हम अपने काव्य को लय बद्ध भी कर पाए तो जैसे सोने पर सुहागा। छन्द शास्त्र इसमे हमारी मदद करता है।

अगर हमें किसी भी विषय का विश्लेषण करना हो तो पहले उसे घटकों मे विभाजित करना आवश्यक है। फिर जब हम उन घटकों का विस्तार मे विवेचन करते हैं तो विषय अपने आप ही आत्मसात हो जाता है। अब हम छन्द को उसके घटकों मे विभाजित करेंगे और हर घटक का विस्तार मे विवेचन करेंगे जिससे की छन्द शास्त्र को समझने मे आसानी हो।

छन्द के घटक

छन्द के घटक हैं  पाद / चरण,  अनुप्रास / यमक, मात्रा, गण, यति / विराम, गति।


पाद चरण

हर प्रकार के काव्य मे 'पाद' या 'चरण' होते हैं। यह दोनों शब्द वैकल्पिक है माने दोनों का अर्थ समान है। काव्य की हर पंक्ति को 'दल' कहते हैं। एक दल मे एक या दो चरण होते हैं। उदाहरणस्वरूप दोहे मे दो चरण होते हैं। नीचे दिए हुए उदाहरण देखिए।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागै अति दूर।।


माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥


चौपाई मे चार चरण होते है। उदाहरण के लिए रामचरितमानस की दो चौपाइयाँ दी हुई हैं।


जेहि पर कृपा करहिं जनुजानी।

कवि उर अजिर नचावहिं बानी।।

मोरि सुधारहिं सो सब भांती।

जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।


जिमि सरिता सागर मंहु जाही।

जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।

तिमि सुखसंपत्ति बिनहि बोलाएं।

धर्मशील पहिंजहि सुभाएं।।


वैसे ही छप्पय मे छः चरण होते है। कभी-कभी काव्य के दों चरण एक ही दल मे यानी पंक्ति मे लिखे जाते हैं मगर उससे चरणों की गिनती मे कोई फर्क नहीं होता।

किसी भी काव्य को गेयता प्रदान करने के लिए ये आवश्यक होता है कि उसे छोटे-छोटे समान टुकड़ों मे बांटा जाए। यहीं पाद या चरण है।

आशा है आपको ये पहला अध्याय पसंद आया होगा। दूसरे अध्याय मे हम छन्द के दूसरे घटक 'अनुप्रास अलंकार' और 'यमक अलंकार' के बारे मे चर्चा करेंगे। 


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