Ek sher

"रोज़ के कारोबार में यूँ उलझे रहे हम


कि जज़्बात दिलों के बेगाने से लगे!


चल आज चुरा लें चंद घड़ियाँ मसरूफ़ियात से


कि अपनी धड़कने भी हमें साज़-ए-बयान लगे!!"

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