नादान मन


एकदम नादान सा है ये मन मेरा,
जो चाहता नहीं इसे,
उसी से प्यार कर बैठा है।

बहुत ही पागल है ये दिल मेरा,
जो देखता भी नहीं इसे,
उससे ही आंखें चार कर बैठा है।

बिल्कुल ही मासूम सा है प्यार मेरा,
जो जानता भी नहीं मुझे,
उसे ही अपनी जान मान बैठा है।

अब कैसे समझाऊँ "सखी" तुझे,
कि इस प्यार में सिर्फ दर्द मिलता है,
मगर
बहुत ही बेपरवाह है ये दिल मेरा,
दर्द से ही पहचान कर बैठा है...

©सखी

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