शादी में फ़िज़ूल खर्च
आज का विषय आनंदित घटना के साथ ज़रूरी बदलाव के लिए भी हमें सोचने पर मजबूर करता है।विवाह-शादी में बंधनेवालो के सपनो की उड़ान ही कुछ अलग होती है ।सदीओ से चले आ रहे इस रिवाज़ को सब ख़ुशी-ख़ुशी अपनाते है,ये सोचकर के शादी तो एक बार करनी है और वह प्रसंग यादगार रहे जाए।पहेले के समय में और अभी लोगो के रहन-सहन और ज़िन्दगी के प्रति सोच में काफी परिवर्तन आया है।
एक तरफ से देखा जाए तो ये सभी उत्सव जो हम मनाते है उससे व्यापार में तो बढ़ावा होता ही हे।जैसे गहने से लेकर खाने तक के खर्च से हमारे कारण कोई और कमाता है जैसे दुसरो की वजह से हम कमाते है ।हम हमारे देश में लघुउद्योगो को बढ़ावा देते है ।शादी के समारोह में होनेवाले हर खर्च हमारे समाज के बिज़नेस का एक हिस्सा है ।और अब जब लड़का लड़की खुद अपनी कॅरियर बनाते है और खुद के आनंद के लिए खर्च करते है ।गरीब की लड़की की शादी के लिए हमारे यहाँ आर्यसमाज और रजिस्टर विवाह की सुविधा है ही ।शादी के वकत धार्मिक विधियाँ इतनी खर्चाण नहीं है लेकिन बिन ज़रूरी खाने की वेराइटीज वगैराह पर खर्च नहीं होना चाहिए ।शादी के वकत खरीदी गयी चीज़ें तो काम आनेवाली ही है ,लेकिन डेकोरेशन वगैराह में भी जिसको री-यूज़ कर सके ऐसे आयोजन होना चाहिए।कितने लोग शादी के वकत काफी दान भी करते है, ज़रूरियातमंद को गिफ्ट भी देते है।लेकिन अगर कोई सिर्फ़ अपने स्टेटस के लिए सामनेवाले को खर्च करवाए ये ग़लत है।
आज लाइफस्टाइल इतना बदल गया है कि हमारा युवा जनरेशन पश्चिमी स्टाइल से प्रभावित होकर पार्टियाँ रखते है ,जब कि आप अगर जाने तो विदेशी लोग अपनी शादी पर बहोत काम खर्च करते है।वहाँ सब अपनी कॅरियर और घर वगैराह बनाने में ज़्यादा ध्यान रखते है ।हमारे भारत में महिलाए काम करने नहीं जाती इस विचार से प्रेरित शादी के वक्त ज़्यादा खरीदी की जाती है कि हमारी बेटी को किसी चीज़ की कमी नहीं रहे ।और दहेज़ भी इसी सोच का नतीजा है कि औरते बेटे के ससुराल से शादी के वक्त चीजे डिमांड करके अपनी इच्छाए पूर्ण करती है ।अपने सर्कल में सबको दिखने के लिए भी बहु से चीजे डिमांड की जाती है।
लेकिन ये सब खर्च बचाने के लिए पैसेवाले लोग भी समूहलग्न में भाग ले तो काफी खर्च बच सकता है।
-मनीषा जोबन देसाई
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